"मनुष्याणाम् सहस्त्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्माम् वेत्ति तत्वत: ॥"
~
"हजारों मनुष्यों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है
,
,
और उन यत्न करने वालों में भी कोई एक ही मेरे परायण होकर मुझको तत्व
से अर्थात् यथार्थ रुप से जानता है ।"
~
(श्रीभगवान श्रीकृष्ण , श्रीमद्भगवद्गीता 7.3)
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