अब में थक गया ..
खुदको..बदलनेकी चाह में..
अबे में..हार गया इस दुनिन्य की रिवाजों में..
राख बनके बिखार्गाया..
में तो कहिका न रहा..
अगर ऐसेही जीना हे.
तो मुजहे अभी यहाँ मरना हे..
मेरे जिनके तरीके
कभी दुनिया से मिले नही..
कभी किसी को बदलना पड़ेगा…
हर आसुमे मेरे आखोका..
मुजहे पुचता हे,..
तू क्यों रोता हे?
इस दुनिया के लिए मत रोना..
तेरा इससे कोई न नाता हे..
तो तेरा ख़६य़ा जाता हे??
तू फोकट में क्यों रता हे??
यहाँ हर पल जो गुजरता हे.
और हर लम्हा जो कटता हे..?
प्यार कभी देखा नही..
दोस्ती कभी जनि नही.
रिश्ते कभी मने नही..
यहाँ कोई अपना नही..
बोहोत जी लिया लोगोमे..
थोड़ा तनहा रहना हे..
मेरी गलती.
में ही ज्हुता..
में नासमज्ह..
में कलूटा..
ज़माने का ये कहना हे..
अब थोड़ा खुदको जानना हे..
लाखो रहे..
लाखो चाहत..
लाखो सपने..
लाखो काबिलियत..
ये सब..सबकुछ ज्हुता हे.
अब थोड़ा सुच में जीना हे..
कुश नही करना हे साबित..
कुछ नही समज्हना हे..
कुछ नही सोचना हे..
बोहोत जिली जिंदगी..अब चैन की नींद सोना हे..
अब थोड़ा मरना हे..
में कमीना..ज्हुता मक्कार हु.में इंसान कम…जादा सैतान हु..
मुज्से दूर रहो कही तुम पे न पड़े मेरा साया..
में इंसान नही समशान हु…
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