खुदसे बेईमान भी
हम कभी होते हें.
क्या तुम मुजहे चाह्तिहो
खुदसे ये जब पुचातेहे
एक शाम को..
तुज्हे सामने पाया..
कुछ गुन गुना रहता..
जो कुछ लिखता नया.
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