Wednesday, January 30, 2013

realize..


"मनुष्याणाम् सहस्त्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्माम् वेत्ति तत्वत: ॥"

~

"हजारों मनुष्यों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है 
और उन यत्न करने वालों में भी कोई  एक ही मेरे परायण होकर मुझको तत्व

से अर्थात् यथार्थ रुप से जानता है ।"

~
(श्रीभगवान श्रीकृष्ण , श्रीमद्भगवद्गीता 7.3)

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