कही एक सुखा पत्ता..
पेड़ दस गिर रहा हे..
पेड़ को खोने की गम में.
धरती को अपना रहा हे..
वो पड़ा हे अब धरती पे..
पवन के साथ सेर पे जाता हे..
हवा में सवेर उड़ते समय..
पेड़ से बंधे रहने के
दुःख..जान लेता हे…
एहसास होता हे..
खुदसे ही हसके वो एक लम्बी सास लेता हे..
तभी कोई उसे पैरोसे खुचल देता हे..
एक ही क्षण में मिटटी में मिल जाता हे..
पेड़ से बिछदनेकी सज़ा पता हे..
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