ऐसे कही कोई दूरसे..
हमे देखे जर आहा हे..
पास नही आ रहा हे..
नज़रे एक पांची की..
आसमान पे हे..
पर उड़ नही प् रहा हे..
हम ऐसे क्यों जीते हे??
लोग ऐसे क्यों पाशा आते हे?
हम जैसे दिकते हे..वैसे होते नही..
अन्दर कुछ जलता हे..बहार कुछ नही..
एस अलगे ये ज़िन्दगी..कही हे अधूरी..
चलो.हम –tum..करे इसे पुरी..
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